पृथ्वीराज चौहान (1149-1192)
==============================
महाराणा प्रताप
===============================
चंगेज़ ख़ाँ( )
==============================
चित्तौड़ का पहला जौहर
===============================महाराणा प्रताप
===============================
चंगेज़ ख़ाँ( )
================================
मुगल राजवंश
भारत में मुगल राजवंश महानतम शासकों में से एक था। मुगल शासकों ने हज़ारों लाखों लोगों पर शासन किया। भारत एक नियम के तहत एकत्र हो गया और यहां विभिन्न प्रकार की सांस्कृतिक और राजनैतिक समय अवधि मुगल शासन के दौरान देखी गई। पूरे भारत में अनेक मुस्लिम और हिन्दु राजवंश टूटे, और उसके बाद मुगल राजवंश के संस्थापक यहां आए।
कुछ ऐसे लोग हुए हैं जैसे कि बाबर, जो महान एशियाई विजेता तैमूर लंग का पोता था और गंगा नदी की घाटी के उत्तरी क्षेत्र से आए विजेता चंगेज़खान, जिसने खैबर पर कब्जा करने का निर्णय लिया और अंतत: पूरे भारत पर कब्ज़ा कर लिया।
=========================================================
तैमूर लंग () दूसरा चंगेज़ ख़ाँ बनना चाहता था। वह चंगेज़ का वंशज होने का दावा करता था, लेकिन असल में वह तुर्क था। वह लंगड़ा था, इसलिए तैमूर लंग कहलाता था। वह अपने बाप के बाद सन् 1369 ई. में समरंदर का शासक बना। इसके बाद ही उसने अपनी विजय और क्रूरता की यात्रा शुरू की। वह बहुत बड़ा सिपहसलार था, लेकिन पूरा वहशी भी था। मध्य एशिया के मंगोल लोग इस बीच में मुसलमान हो चुके थे और तैमूर खुद भी मुसलमान था। लेकिन मुसलमानों से पाला पड़ने पर वह उनके साथ जरा भी मुलायमित नहीं बरतता था। जहाँ-जहाँ वह पहुँचा, उसने तबाही और बला और पूरी मुसीबत फैला दी। नर-मुंडों के बड़े-बड़े ढेर लगवाने में उसे ख़ास मजा आता था। पूर्व में दिल्ली से लगाकर पश्चिम में एशिया-कोचक तक उसने लाखों आदमी क़त्ल कर डाले और उनके कटे सिरों को स्तूपों की शक्ल में जमवाया।
================================================================
बाबर (1526-1530): यह तैमूर लंग और चंगेज़खान का प्रपौत्र था जो भारत में प्रथम मुगल शासक थे। उसने पानीपत के प्रथम युद्ध में 1526 के दौरान लोधी वंश के साथ संघर्ष कर उन्हें पराजित किया और इस प्रकार अंत में मुगल राजवंश की स्थापना हुई। बाबर ने 1530 तक शासन किया और उसके बाद उसका बेटा हुमायूं गद्दी पर बैठा। In detail
=================================================================
हुमायूं (1530-1540 और 1555-1556): बाबर का सबसे बड़ा था जिसने अपने पिता के बाद राज्य संभाला और मुगल राजवंश का द्वितीय शासक बना। उसने लगभग 1 दशक तक भारत पर शासन किया किन्तु फिर उसे अफगानी शासक शेर शाह सूरी ने पराजित किया। हुमायूं अपनी पराजय के बाद लगभग 15 वर्ष तक भटकता रहा। इस बीच शेर शाह मौत हो गई और हुमायूं उसके उत्तरवर्ती सिकंदर सूरी को पराजित करने में सक्षम रहा तथा दोबारा हिन्दुस्तान का राज्य प्राप्त कर सका। जबकि इसके कुछ ही समय बाद केवल 48 वर्ष की उम्र में 1556 में उसकी मौत हो गई।
====================================================================
शेर शाह सूरी (1540-1545): एक अफगान नेता था जिसने 1540 में हुमायूं को पराजित कर मुगल शासन पर विजय पाई। शेर शाह ने अधिक से अधिक 5 वर्ष तक दिल्ली के तख्त पर राज किया और वह इस उप महाद्वीप में अपने अधिकार क्षेत्र को स्थापित नहीं कर सका। एक राजा के तौर पर उसके खाते में अनेक उपलब्धियों का श्रेय जाता है। उसने एक दक्ष लोक प्रशासन की स्थापना की। उसने भूमि के माप के आधार पर राजस्व संग्रह की एक प्रणाली स्थापित की। उसके राज्य में आम आदमी को न्याय मिला। अनेक लोक कार्य उसके अल्प अवधि के शासन कार्य में कराए गए जैसे कि पेड़ लगाना, यात्रियों के लिए कुएं और सरायों का निर्माण कराया गया, सड़कें बनाई गई, उसी के शासन काल में दिल्ली से काबुल तक ग्रांड ट्रंक रोड बनाई गई। मुद्रा को बदल कर छोटी रकम के चांदी के सिक्के बनवाए गए, जिन्हें दाम कहते थे। यद्यपि शेर शाह तख्त पर बैठने के बाद अधिक समय जीवित नहीं रहा और 5 वर्ष के शासन काल बाद 1545 में उसकी मौत हो गई।
======================================================================
अकबर (1556-1605): हुमायूं के उत्तराधिकारी, अकबर का जन्म निर्वासन के दौरान हुआ था और वह केवल 13 वर्ष का था जब उसके पिता की मौत हो गई। अकबर को इतिहास में एक विशिष्ट स्थान प्राप्त है। वह एक मात्र ऐसा शासक था जिसमें मुगल साम्राज्य की नींव का संपुष्ट बनाया। लगातार विजय पाने के बाद उसने भारत के अधिकांश भाग को अपने अधीन कर लिया। जो हिस्से उसके शासन में शामिल नहीं थे उन्हें सहायक भाग घोषित किया गया। उसने राजपूतों के प्रति भी उदारवादी नीति अपनाई और इस प्रकार उनसे खतरे को कम किया। अकबर न केवल एक महान विजेता था बल्कि वह एक सक्षम संगठनकर्ता एवं एक महान प्रशासक भी था। उसने ऐसा संस्थानों की स्थापना की जो एक प्रशासनिक प्रणाली की नींव सिद्ध हुए, जिन्हें ब्रिटिश कालीन भारत में भी प्रचालित किया गया था। अकबर के शासन काल में गैर मुस्लिमों के प्रति उसकी उदारवादी नीतियों, उसके धार्मिक नवाचार, भूमि राजस्व प्रणाली और उसकी प्रसिद्ध मनसबदारी प्रथा के कारण उसकी स्थिति भिन्न है। अकबर की मनसबदारी प्रथा मुगल सैन्य संगठन और नागरिक प्रशासन का आधार बनी।
अकबर की मृत्यु उसके तख्त पर आरोहण के लगभग 50 साल बाद 1605 में हुई और उसे सिकंदरा में आगरा के बाहर दफनाया गया। तब उसके बेटे जहांगीर ने तख्त को संभाला।
======================================================================
जहांगीर: अकबर के स्थान पर उसके बेटे सलीम ने तख्तोताज़ को संभाला, जिसने जहांगीर की उपाधि पाई, जिसका अर्थ होता है दुनिया का विजेता। उसने मेहर उन निसा से निकाह किया, जिसे उसने नूरजहां (दुनिया की रोशनी) का खिताब दिया। वह उसे बेताहाशा प्रेम करता था और उसने प्रशासन की पूरी बागडोर नूरजहां को सौंप दी। उसने कांगड़ा और किश्वर के अतिरिक्त अपने राज्य का विस्तार किया तथा मुगल साम्राज्य में बंगाल को भी शामिल कर दिया। जहांगीर के अंदर अपने पिता अकबर जैसी राजनैतिक उद्यमशीलता की कमी थी। किन्तु वह एक ईमानदार और सहनशील शासक था। उसने समाज में सुधार करने का प्रयास किया और वह हिन्दुओं, ईसाइयों तथा ज्यूस के प्रति उदार था। जबकि सिक्खों के साथ उसके संबंध तनावपूर्ण थे और दस सिक्ख गुरूओं में से पांचवें गुरू अर्जुन देव को जहांगीर के आदेश पर मौत के घाट उतार दिया गया था, जिन पर जहांगीर के बगावती बेटे खुसरू की सहायता करने का अरोप था। जहांगीर के शासन काल में कला, साहित्य और वास्तुकला फली फूली और श्री नगर में बनाया गया मुगल गार्डन उसकी कलात्मक अभिरुचि का एक स्थायी प्रमाण है। उसकी मृत्यु 1627 में हुई।
======================================================================
शाहजहां: जहांगीर के बाद उसके द्वितीय पुत्र खुर्रम ने 1628 में तख्त संभाला। खुर्रम ने शाहजहां का नाम ग्रह किया जिसका अर्थ होता है दुनिया का राजा। उसने उत्तर दिशा में कंधार तक अपना राज्य विस्तारित किया और दक्षिण भारत का अधिकांश हिस्सा जीत लिया। मुगल शासन शाहजहां के कार्यकाल में अपने सर्वोच्च बिन्दु पर था। ऐसा अतुलनीय समृद्धि और शांति के लगभग 100 वर्षों तक हुआ। इसके परिणाम स्वरूप इस अवधि में दुनिया को मुगल शासन की कलाओं और संस्कृति के अनोखे विकास को देखने का अवसर मिला। शाहजहां को वास्तुकार राजा कहा जाता है। लाल किला और जामा मस्जिद, दिल्ली में स्थित ये दोनों इमारतें सिविल अभियांत्रिकी तथा कला की उपलब्धि के रूप में खड़ी हैं। इन सब के अलावा शाहजहां को आज ताज महल, के लिए याद किया जाता है, जो उसने आगरा में यमुना नदी के किनारे अपनी प्रिय पत्नी मुमताज महल के लिए सफेद संगमरमर से बनवाया था।
=====================================================================
औरंगज़ेब: औंरगज़ेब ने 1658 में तख्त संभाला और 1707 तक राज्य किया। इस प्रकार औरंगज़ेब ने 50 वर्ष तक राज्य किया। जो अकबर के बराबर लम्बा कार्यकाल था। परन्तु दुर्भाग्य से उसने अपने पांचों बेटों को शाही दरबार से दूर रखा और इसका नतीजा यह हुआ कि उनमें से किसी को भी सरकार चलाने की कला का प्रशिक्षण नहीं मिला। इससे मुगलों को आगे चल कर हानि उठानी पड़ी। अपने 50 वर्ष के शासन काल में औरंगजेब ने इस पूरे उप महाद्वीप को एक साथ एक शासन लाने की आकांक्षा को पूरा करने का प्रयास किया। यह उसी के कार्यकाल में हुआ जब मुगल शासन अपने क्षेत्र में सर्वोच्च बिन्दु तक पहुंचा। उसने वर्षों तक कठिन परिश्रम किया किन्तु अंत में उसका स्वास्थ्य बिगड़ता चला गया। उसने 1707 में 90 वर्ष की आयु पर मृत्यु के समय कोई संपत्ति नहीं छोड़ी। उसकी मौत के साथ विघटनकारी ताकतें उठ खड़ी हुईं और शक्तिशाली मुगल साम्राज्य का पतन शुरू हो गया।
=====================================================================
जहाँदारशाह बहादुरशाह (1712-1713)
जहाँदारशाह बहादुरशाह प्रथम के चार पुत्रों में से एक था। बहादुरशाह प्रथम के मरने के बाद उसके चारों पुत्रों 'जहाँदारशाह', 'अजीमुश्शान', 'रफ़ीउश्शान' एवं 'जहानशाह' में उत्तराधिकार के लिए संघर्ष छिड़ गया। इस संघर्ष में जुल्फिकार ख़ाँ के सहयोग से जहाँदारशाह के अतिरिक्त बहादुरशाह प्रथम के अन्य तीन पुत्र आपस में संघर्ष के दौरान मारे गये। 51 वर्ष की आयु में जहाँदारशाह 29 मार्च, 1712 को मुग़ल राजसिंहासन पर बैठा। जुल्फिकार ख़ाँ इसका प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया, तथा असद ख़ाँ 'वकील-ए-मुतलक' के पद पर बना रहा। ये दोनों बाप-बेटे ईरानी अमीरों के नेता थे। जहाँदारशाह के शासन काल के बारे में इतिहासकार 'खफी ख़ाँ' का कहना है, "नया शासनकाल चारणों और गायकों, नर्तकों एवं नाट्यकर्मियों के समस्त वर्गों के लिए बहुत अनुकूल था।" जहाँदारशाह ने सिर्फ़ 1712 से 1713 ई. तक ही शासन किया।
जहाँदारशाह के शासनकाल में प्रशासन की पूरी बागडोर जुल्फिकार ख़ाँ के हाथों में थी। दरबार में अपनी स्थिति मज़बूत बनाने तथा साम्राज्य को बचाने के लिए यह आवश्यक था कि, राजपूत राजाओं तथा मराठों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित किया जाय। इसलिए उसने राजपूतों की तरफ़ मैत्रीपूर्ण क़दम बढ़ाते हुये, आमेर के जयसिंह को मालवा का सूबेदार नियुक्त किया, तथा 'मिर्जा राजा' की पदवी दी। मारवाड़ के अजीत सिंह को 'महाराजा'की पदवी दी और गुजरात का शासक नियुक्त किया। उसने जजिया कर को भी समाप्त कर दिया। जुल्फिकार ख़ाँ ने चूड़ामन जाट तथा छत्रसाल बुन्देला के साथ भी मेल-मिलाप किया तथा केवल बन्दा बहादुर के विरुद्ध दमन की नीति को जारी रखा।
जुल्फिकार ख़ाँ इच्छा
जागीरों और ओहदों की अंधाधुंध वृद्धि पर रोक लगाकार जुल्फिकार ख़ाँ ने साम्राज्य की वित्तीय स्थिति को सुधारने का प्रयास किया, किन्तु उसने एक ग़लत प्रवृति 'इजारा व्यवस्था' को बढ़ावा दिया। इसके अन्तर्गत एक निश्चित दर पर भू-राजस्व वसूल करने के बदले में सरकार ने 'इजारेदार' (लगान के ठेकेदारों) और बिचैलियों के साथ यह करार करना आरम्भ कर दिया था कि, वे सरकार को एक निश्चित मुद्रा राशि दें। बदले में किसानों से जितना लगान वसूल कर सकें, उतना वसूलने के लिए उन्हें आज़ाद छोड़ दिया गया। इससे किसानों का उत्पीड़न बढ़ा। जुल्फिकार ख़ाँ वज़ीर की शक्ति में वृद्धि करके शक्तिशाली होना चाहता था, जिसके कारण शाही सामंतों ने जुल्फिकार ख़ाँ के विरुद्ध षड़यंत्र करना प्रारंभ कर दिया। जुल्फिकार ख़ाँ ने अपने सारे प्रशासनिक दायित्व अपने एक नजदीकी व्यक्ति 'सुभगचन्द्र' के हाथों में दे दिया था।
अयोग्य व विलासी सम्राट
जहाँदारशाह अयोग्य एवं विलासी सम्राट था। उसने अपने शासन के कार्यों में 'लाल कुंवर' नाम की वेश्या को हस्तक्षेप करने का अधिकार दे रखा था। अतः अजीमुश्शान के पुत्र फ़र्रुख़सियर ने पटना के सूबेदार सैयद बन्धु 'हुसैन अली ख़ाँ' एवं उसके बड़े भाई इलाहाबाद के सहायक सूबेदार 'अब्दुल्ला ख़ाँ' के सहयोग से जहाँदारशाह को उपदस्थ करना चाहा। हुसैन अली ख़ाँ एवं अब्दुल्ला ख़ाँ, जिन्हें 'सैय्यद बंधु' के नाम से भी जाना जाता है, मुग़लकालीन भारतीय इतिहास में 'शासक निर्माता' के रूप में प्रसिद्ध हैं।
मृत्यु
सैय्यद बंधुओं के सहयोग से फ़र्रुख़सियर ने 10 जनवरी, 1713 को आगरा में जहाँदारशाह को बुरी तरह परास्त किया। 11 फ़रवरी, 1713 को असद ख़ाँ एवं जुल्फिकार ख़ाँ ने इसकी हत्या कर दी। जहाँदारशाह मुग़ल वंश का प्रथम अयोग्य शासक था। उसे 'लम्पट मूर्ख' कहा जाता था। जहाँदारशाह के बारे में 'अर्विन' ने लिखा है, "तैमूर के ख़ानदान में जहाँदारशाह पहला सम्राट था, जिसने स्वयं को अपने बेहद नीचता, क्रूर स्वभाव, दिमाग के छिछलेपन तथा कायरता के कारण शासन करने में पूरी तरह से अयोग्य पाया।"
एक समकालीन इतिहासकार 'इरादत ख़ाँ' ने जहाँदारशाह के विषय में लिखा है, "वह रंगरेलियों में डूबे रहने वाला एक कमज़ोर व्यक्ति था, जिसने तो राज्य के कार्यों की चिन्ता की, और न उमरावों में से किसी का लगाव था।" जहाँदारशाह के शासनकाल में "उल्लू बाज के घोंसले में रहता था, तथा कोयल का स्थान कौवे ने ले लिया था।"
=======================================================================
बहादुर शाह ज़फ़र(1837-58)
बहादुर शाह ज़फ़र का जन्म 24 अक्तूबर सन् 1775 ई. को दिल्ली में हुआ था। बहादुर शाह ज़फ़र मुग़ल साम्राज्य के अंतिम बादशाह थे। इनका शासनकाल 1837-58 तक था। बहादुर शाह ज़फ़र एक कवि, संगीतकार व खुशनवीस थे और राजनीतिक नेता के बजाय सौंदर्यानुरागी व्यक्ति अधिक थे।
शासनकाल
बहादुर शाह अकबर शाह द्वितीय और लालबाई के दूसरे पुत्र थे। अपने शासनकाल के अधिकांश समय उनके पास वास्तविक सत्ता नहीं रही और वह अंग्रेज़ों पर आश्रित रहे। 1857 ई. में स्वतंत्रता संग्राम शुरू होने के समय बहादुर शाह 82 वर्ष के बूढे थे, और स्वयं निर्णय लेने की क्षमता को खो चुके थे। विद्रोहियों ने उनको आज़ाद हिन्दुस्तान का बादशाह बनाया। इस कारण अंग्रेज़ उनसे कुपित हो गये और उन्होंने उनसे शत्रुवत् व्यवहार किया। सितम्बर 1857 ई. में अंग्रेज़ों ने दुबारा दिल्ली पर क़ब्ज़ा जमा लिया और बहादुर शाह द्वितीय को गिरफ़्तार करके उन पर मुक़दमा चलाया गया तथा उन्हें रंगून निर्वासित कर दिया गया।
मृत्यु
बहादुर शाह ज़फ़र की मृत्यु 86 वर्ष की अवस्था में 7 नवंबर 1862 को रंगून (वर्तमान यांगून), बर्मा (वर्तमान म्यांमार) में हुई थी। उसी दिन उनके दो बेटों और पोते को भी गिरफ़्तार करके गोली मार दी गई। इस प्रकार बादशाह बाबर ने जिस मुग़ल वंश की स्थापना भारत में की थी, उसका अंत हो गया।
=====================================================================
No comments:
Post a Comment